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कबड्डी का खेल भारत के गांवों में काफी खेला जाता रहा है. इसके साथ ही इस खेल को काफी साल पहले इंटरनेशनल लेवल पर भी ख्याति मिल चुकी है. वहीं देश और दुनिया के लोग इसे काफी पसंद भी करने लगे हैं. भारत ने अभी तक जितने भी अन्तर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लिया है उनमें सफलता हासिल की है. पहले इस खेल को मिटटी के ऊपर और बाहर खेला जाता है. लेकिन आजकल इस खेल को मैट पर और इंडोर में खेला जाता है. कबड्डी के खेल में भारतीय टीम की गहरी रुचि है ऐसे में कई स्थान बनाए गए हैं जहाँ पर इस खेल को अच्छे से खेला जाता है. अज हम आपको उन कबड्डी के मैदान के बारे में बताने जा रहे हैं.
कबड्डी के खेल मैदान के बारे में जानिए :
ईकेए एरिना :
यह देश का सबसे जाना-माना कबड्डी स्टेडियम है. यह गुजरात के अहमदाबाद में स्थापित है. कांकरिया झील में स्थित यह खेल मैदान काफी माना हुआ है. द एरिना के नाम से मशहूर यह स्टेडियम काफी पोपुलर है. इस खेल मैदान में कई बहुउद्देशीय खेल खेले जाते हैं. साथ ही गुजरात खेल विभाग और अन्य कंपनी इस खेल मैदान का संयोजन करती है.
जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम :
चेन्नई के मरीना एरिना में स्थापित इस खेल मैदान में काफी कुछ अच्छा है जो एक स्टेडियम में होना चाहिए. मद्रास चिड़ियाघर के समान इस खेल मैदान को बनाया गया है. इस खेल मैदान का उपयोग ज्यादा से ज्यादा फुटबॉल मैच के लिए किया जाता है. वहीं इस स्टेडियम एक बड़ा परिसर भी है जो अन्य खेलों को खेलने में काम आता है.
पाटलिपुत्र खेल परिसर :
बिहार के कंकरबाग में यह एक बहुत उपयोगी खेल स्टेडियम है. जहां खेल परिसर बनाया गया है. इसका निर्माण साल 2011 में किया गया था. बिहार राज्य खेल प्राधिकरण और युवा कल्याण और खेल निदेशालय द्वारा इस खेल मैदान को बनाया गया है. वहीं इस खेल मैदान के मालिक हैं. वहीं इस मैदान में करीब बीस हजार से ज्यादा दर्शकों के बैठने की जगह शामिल है.
यहीं पर हाल ही में कबड्डी शिविर का भी आयोजन किया गया था. इसके साथ ही पटना टीम का शिविर भी इसमें आयोजित किया जाता है. वहीं प्रो कबड्डी लीग के अधिकतर मैचों का आयोजन भी किया जाता रहा है. बता दें इस खेल मैदान में हर विशेस सुविधा उपलब्ध है. इसके साथ ही खेल मैदान में कई और उपयोगी सामान भी लगे हुए हैं जो खिलाड़ियों के लिए काफी लाभदायक है.
त्यागराज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स :
देश की राजधानी दिल्ली में स्थित त्यागराज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स काफी अत्याधुनिक है. यहाँ पर कई तरीके के खेल आयोजित किए जाते हैं. इसके साथ ही तीन सौ करोड़ की लागत से इस खेल मैदान को बनाया गया है. त्यागराज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कई जगह है जहां पर इंटरनेशनल मैच के साथ अन्य मैच भी होते हैं. इसके साथ ही वहां का अत्याधुनिक खेल मैदान स्थित हैं. इसके साथ ही इसका उद्घान तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने किया था.
चाहे एशियाई खेल हो या वर्ल्ड कप हो टीम को हर में सफलता का अनुभव हुआ है. चार एशियाई खेल अभी तक भारत ने खेले हैं और इनमें स्वर्ण पदक जीता है. भारत में इस खेल को हर क्षेत्र में अलग तरीके से खेला जाता है. कहीं इसे अमर कहा जाता है. तो कहीं इसे सुरंजीवी कहा जाता है. बता दें यहाँ के कबड्डी खिलाड़ियों को खेलने के अच्छे स्टेडियम भी दिए गए हैं जिससे कि इस खेल में और बदलाव आया है.
कबड्डी मैदान का माप
कबड्डी के बारे में जानकारी दें तो इंटरनेशनल लेवल के दलों में प्रत्येक दल में सात खिलाड़ी होते हैं. खेल का मैदान दो दलों में बराबर भागो में बंटा होता है. पुरुषों द्वारा खेले जाने वाले कबड्डी में मैदान का क्षेत्रफल 10 बाई 13 का होता है वहीं स्त्रियों द्वारा खेले जाने वाले कबड्डी में मैदान का क्षेत्रफल 8 बाई 12 का होता है. दोनों दलों में तीन अतिरिक्त खिलाड़ी मौजूद रहते हैं. ये खेल दो बार खेले जाते हैं जिसमें 20-20 मिनट का अंतराल होते हैं. जिसके बीच खिलाड़ियों को पांच मिनट का हाफ टाइम मिलता है. इस हाफ टाइम के दौरान दोनों दल अपना कोर्ट बदल लेते है.
कबड्डी का पुराना इतिहास
कोई इतिहासकार इस खेल का सम्बन्ध महाभारत काल से भी जोड़ते है. जिसमें एक प्रसंग के तहत इस खेल को समझाया गया है. बताय जाता है जब कौरवों और पांडवों में युद्ध हो रहा था तब इस खेल का उपयोग कौरवों ने किया था. दरअसल बताया जाता है कि जब अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फसाया गया था तब कौरवों ने सात दरवाजे बनाए थे. जिसमें से निकलना अभिमन्यु के लिए मुश्किल था. तो उन्हीं सात दरवाजों का सम्बन्ध कबड्डी के खेल में साथ खिलाड़ियों से जोड़ा जाता है.
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि कबड्डी का उल्लेख बौद्ध साहित्य में भी मिलता है. जो यह साबित करता है कि कबड्डी का खेल काफी पुराना है. गौतम बुद्ध को ही कबड्डी के शुरुआत का जंक माना जाता है. कहा जाता है कि वह इस खेल को अपने साथियों के साथ खेला करते थे.
वहीं ईरान वाले भी इस खेल को अपने देश का मानते है. बता दें एमेच्योर कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया ने कबड्डी का इतिहास अपनी वेबसाइट पर डाला हुआ है. जिसमें लिखा है कि आधुनिक कबड्डी 1930 से पूरे भारत और दक्षिण एशिया के हिस्से में खेला जा रहा है. भारत के स्वदेशी खेल के रूप में कबड्डी के नियमों का पहला लेखाजोखा साल 1921 में किया गया था.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी का खेल
कबड्डी एक ऐसा खेला है जिसमें कई मिश्रित खेल होते है इसमें खिलाड़ी को काफ चुस्त-फुर्तीला होना पड़ता है और कदमों का बखूबी इस्तेमाल करना पड़ता है. इसमें रेसलिंग, रग्बी आदि खेलों का मिश्रण देखने को मिलता है. इसका मुकाबला दो टीमों के बीच होता है. ये जबरदस्त खेल भी है और दूसरी तरफ कई कसरतों का मेल भी है. समय के साथ इस खेल का बहुत विकास हुआ है. आज ये खेल देश, विदेश और सब जगह गांव-गांव, शहरों में भी फैलता जा रहा है. बहुत बड़े स्तर पर खेले जाने वाले इस खेल में कई नौजवान भी दिलचस्पी ले रहे हैं. और अपने क्षेत्र के कबड्डी क्लब से जुड़कर अबद्दी के जरिए अपना भविष्य और अपनी पहचान बनाने की कोशिश में लगे हैं.