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कबड्डी के खेल का जन्म भारत में हुआ था लेकिन अब ये पूरे विश्व में प्रसारित हो चुका है. कबड्डी एक ऐसा खेला है जिसमें कई मिश्रित खेल होते है इसमें खिलाड़ी को काफ चुस्त-फुर्तीला होना पड़ता है और कदमों का बखूबी इस्तेमाल करना पड़ता है. इसमें रेसलिंग, रग्बी आदि खेलों का मिश्रण देखने को मिलता है. इसका मुकाबला दो टीमों के बीच होता है. ये जबरदस्त खेल भी है और दूसरी तरफ कई कसरतों का मेल भी है. समय के साथ इस खेल का बहुत विकास हुआ है. आज ये खेल देश, विदेश और सब जगह गांव-गांव, शहरों में भी फैलता जा रहा है. बहुत बड़े स्तर पर खेले जाने वाले इस खेल में कई नौजवान भी दिलचस्पी ले रहे हैं. और अपने क्षेत्र के कबड्डी क्लब से जुड़कर अबद्दी के जरिए अपना भविष्य और अपनी पहचान बनाने की कोशिश में लगे हैं.
जानिए कबड्डी के खेल का इतिहास
कोई इतिहासकार इस खेल का सम्बन्ध महाभारत काल से भी जोड़ते है. जिसमें एक प्रसंग के तहत इस खेल को समझाया गया है. बताय जाता है जब कौरवों और पांडवों में युद्ध हो रहा था तब इस खेल का उपयोग कौरवों ने किया था. दरअसल बताया जाता है कि जब अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फसाया गया था तब कौरवों ने सात दरवाजे बनाए थे. जिसमें से निकलना अभिमन्यु के लिए मुश्किल था. तो उन्हीं सात दरवाजों का सम्बन्ध कबड्डी के खेल में साथ खिलाड़ियों से जोड़ा जाता है.
पौराणिक कबड्डी के खेल की जानकारी
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि कबड्डी का उल्लेख बौद्ध साहित्य में भी मिलता है. जो यह साबित करता है कि कबड्डी का खेल काफी पुराना है. गौतम बुद्ध को ही कबड्डी के शुरुआत का जंक माना जाता है. कहा जाता है कि वह इस खेल को अपने साथियों के साथ खेला करते थे.
वहीं ईरान वाले भी इस खेल को अपने देश का मानते है. बता दें एमेच्योर कबड्डी फेडरेशन ऑफ इंडिया ने कबड्डी का इतिहास अपनी वेबसाइट पर डाला हुआ है. जिसमें लिखा है कि आधुनिक कबड्डी 1930 से पूरे भारत और दक्षिण एशिया के हिस्से में खेला जा रहा है. भारत के स्वदेशी खेल के रूप में कबड्डी के नियमों का पहला लेखाजोखा साल 1921 में किया गया था.
आधुनिक कबड्डी का विश्व में गठन
इसके बाद 1923 में एक समिति का गठन भी किया गया था. इसमें ही इन नियमों का संशोधन किया गया था. जिसके बाद इन्हीं नियमों का यहाँ लागू किया गया था. ओलम्पिक में इस खेल को साल 1936 में बर्लिन ओलम्पिक में शामिल किया गया था.
इस खेल को विभिन्न जगहों में विभिन्न नाम से भी जाना जाता है. जैसे तमिलनाडू में कबड्डी को चादूकट्टू, बांग्लादेश में हद्दू, मालद्विप में भवतिक, पंजाब में कुड्डी, पूर्वी भारत में हू तू तू, आंध्र प्रदेश में चेडूगुडू के नाम से जाना जाता है. कबड्डी शब्द तमिल शब्द ‘काई-पीडी’ शब्द से बना है जिसका मतलब है हाथ थामे रहना. तमिल शब्द से निकले वाला शब्द कबड्डी उत्तर भारत में बहुत मशहूर है.
इस खेल का उद्भव प्राचीन भारत के तमिलनाडू में हुआ था. आधुनिक कबड्डी इसी का संशोधित रूप है जिसे विभिन्न जगहों पर अन्य कई नामों से जाना जाता है. ये विश्वस्तरीय ख्याति सन 1936 में बर्लिन ओलम्पिक से मिली. सं 1938 में इसे कलकत्ता में राष्ट्रीय खेलों में सम्मिलित किया गया. सन 1950 में अखिल भारतीय कबड्डी फेडरेशन का गठन हुआ और कबड्डी खेले जाने के नियम मुकर्रर किए गए. इसी फेडरेशन को अमैच्योर कबड्डी फेडरेशन का गठन हुआ और कबड्डी खेले जाने के नियम बनाए गए. इसी फेडरेशन को सन 1972 में पुनर्गठित किया गया. इसका प्रथम राष्ट्रीय टूर्नामेंट चेन्नई में इसी साल खेला गया.
आजकल भले ही खेल जगत में क्रिकेट का राज हो लेकिन 2016 कबड्डी वर्ल्डकप के बाद यह सब लोग जान गए है कि कबड्डी के चाहने वालों की कमी नहीं है. नए खेलों में कबड्डी अब स्स्बे तेज उभरता हुआ गेम बन चुका है.
कबड्डी के मैदान की जानकारी
कबड्डी के बारे में जानकारी दें तो इंटरनेशनल लेवल के दलों में प्रत्येक दल में सात खिलाड़ी होते हैं. खेल का मैदान दो दलों में बराबर भागो में बंटा होता है. पुरुषों द्वारा खेले जाने वाले कबड्डी में मैदान का क्षेत्रफल 10 बाई 13 का होता है वहीं स्त्रियों द्वारा खेले जाने वाले कबड्डी में मैदान का क्षेत्रफल 8 बाई 12 का होता है. दोनों दलों में तीन अतिरिक्त खिलाड़ी मौजूद रहते हैं. ये खेल दो बार खेले जाते हैं जिसमें 20-20 मिनट का अंतराल होते हैं. जिसके बीच खिलाड़ियों को पांच मिनट का हाफ टाइम मिलता है. इस हाफ टाइम के दौरान दोनों दल अपना कोर्ट बदल लेते है.
कबड्डी के लिए कई कप आयोजित किए जाते हैं. जिसमें फेडरेशन कप जो कि राष्ट्रीय स्तर का कप होता है. वहीं राष्ट्रीय कबड्डी चैंपियनशिप भी होती है जिसका आयोजन साल 1951 से आयोजित होते जा रही है. यह भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता होती है. साथ ही गोल्ड कप भी आयोजित किया जाता है जो महाराष्ट्र काब्द्दी एसोसिएशन द्वारा आयोजित किया जाता है. अखिल बहर्तीय विद्यालयी कबड्डी टूर्नामेंट का आयोजन साल 1962 तथा लड़कियों के लिए सन 1976 में प्रारम्भ किया गया था. यह टूर्नामेंट भारतीय स्कूल गेम्स फेरेशन के द्वारा आयोजित किया जाता है.
कबड्डी को खेलते समय सावधानी वाली बातें
प्रायः हर खेल में चोटे लगती रहती है ऐसे में कबड्डी के खेल में भी चोट लगना आम बात है. इन चोटों को पूर्णतया रोका नहीं जा सकता है लेकिन निम्न बिन्दुओं पर विशेष बल देने से एक सीमा तक इनको कम किया जा सकता है. कबड्डी कोर्ट साफ़ और समतल होना चाहिए. उसमें कोई पत्थर या छोटे टुकड़े चीज नहीं होनी चाहिए जिससे खिलाड़ियों को खेलते हुए चोट लग जाए. चोट से बचाव के लिए उचित वार्म अप अति आवश्यक होता है इसलिए कबड्डी के सभी खिलाड़ियों को वार्मअप करने की सलाह दी जाती है. खिलाड़ियों को अभ्यास और प्रतियोगिता से पूर्व उचित वार्म करना जरूरी होता है. प्रैक्टिस के दौरान कबड्डी के सभी खिलाड़ियों को उचित अनुकूलन करना चाहिए.