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शासन के पास कोई ऐसी योजना नहीं है जो उन खिलाड़ियों की हालत को सुधार सके जो एक टाइम पर शानदार खिलाड़ी रहे और फिर बदक़िस्मती से आगे नहीं बढ़ सके. इससे खिलाड़ियों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. हम बता दें कि तेजगढ़ में रहने वाले 35 साल के कबड्डी खिलाड़ी विजय पिता सुखदयाल बसोर को दो रोटी पाने में भी काफी मुश्किल हो रही है. विजय ने साल छह साल से ही कबड्डी खेल को शुरुआत कर दी थी. उन्होंने राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भी भाग लिया था. वहीं साल 1999 में पहली बार उन्होंने राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लिया था.
दमोह का विजय जी था गुमनामी की ज़िंदगी
इसके बाद उन्होंने साल 2000 में बिलासपुर में, साल 2001 में ग्वालियर में उसके बाद साल 2003 में दमोह में भाग लिया है. राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उनके टीम विजेता भी रही थी. इसके साथ ही उन्होंने नेशनल भी खेला था. वहीं रायपुर में उन्होंने इस टूर्नामेंट में भाग लिया था. इसके साथ ही उनकी टीम तीसरे स्थान पर रही थी. इसके बाद उन्होंने राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भी भाग लिया था.
बता दें इस खिलाड़ी को इसके बाद कोई पहचान नहीं मिली थी. जिसके बाद यह दाने-डेन को मोहताज हो गया था. वहीं इसके बाद इन्होने मेहनत और मजदूरी कर परिवार का पालना शुरू किया था. वहीं इसके साथ ही खिलाड़ी को राज्य सरकार से कोई सहायता नहीं मिल रही है.
मीडिया से बातचीत में बताया कि, ‘मेरे परिवार वाले काफी समय से मजदूरी का ही काम कर रहे हैं इसे अलावा हमारे पास कमाई का कोई दूसरा जरिया नहीं हैं. मैंने सातवीं क्लास से ही कबड्डी का खेल शुरू का दिया था. मैं गांव में ही स्थित कबड्डी की एकाडमी जाने लगा था.’
उन्होंने आगे बताया कि, ‘मैंने काफी समय कबड्डी खेली लेकिन इस जो कमाई होती उससे घर का खर्च चलाना मुश्किल था. तो इसके लिए मैंने परिवार को सहायता देने के लिए मजदूरी करना शुरू कर दिया. मैं पूरे दिन मजदूरी करता और उसके बाद पांच बजे खेत से छुट्टी मिलने के बाद खेल की प्रैक्टिस करने जाता था.’